जलपरी

रात के 2 बज रहे हैं और पूरे बीच पर सन्नाटा छाया हुआ है। मैं अकेले बैठा हूँ और मेरे सामने विशाल अरब सागर है जिसकी लहरों का शोर बार-बार सन्नाटे को तोड़ रहा है। समुन्दर से ठंडी हवाएं जिस्म को एक मीठा सा सुकून दे रही हैं और लहरें बार-बार आकर मेरे पांवों को छू कर लौट जा रही हैं। चांदनी रात है, प्रदूषण से मुक्त आसमान एक दम बेदाग़ सा है और टिमटिमाते हुए अनगिनत तारे मानो आँख-मिचौली खेल रहे हैं। मेरा मन और दिमाग इतने सालों बाद एक दम शांत है, बिलकुल विचार-शून्य हूँ मैं। किसी बात की परवाह नहीं, कोई फिक्र नहीं। ऐसे ही सुकून के दो पल की तलाश थी इतने सालों से मुझे और मैं स्याह वीराने को बस देखे जा रहा हूँ।

पर अचानक मेरा ध्यान टूटा। थोड़ी दूर पर समुन्दर में कुछ हलचल दिखी पर कुछ पता नहीं चल रहा था ठीक से। थोड़ी देर में एक साया तैर कर किनारे की तरफ आता हुआ दिखा। जब वो साया किनारे पर आया तो जो मैंने देखा वो एक सपने जैसा था।

चाँद की रौशनी में दमकता हुआ उसका खूबसूरत जिस्म, वो सुनहरे बाल, वो कातिल आँखें और संपूर्ण सुंदरता को परिभाषित करने वाला वो चेहरा। उसके पीछे अरब सागर का स्याह वीराना था। चाँद की दूधिया रौशनी उसके बदन पर फिसल रहे बूंदों से टकराकर एक अलग ही समां बाँध रही थीं। उसको देखते ही ऐसा लगा की जैसे समय ठहर सा गया हो, मेरी साँसे रूक गयी, लहरों का शोर सुनाई पड़ना बंद हो गया।

कौन है वो ? क्या ये मेरे मन का वहम है या सही में कोई इतना ज्यादा खूबसूरत हो सकता है ?
और मेरे मन में बस एक शब्द आया - जलपरी !!

वो धीरे-धीरे मेरी तरफ बढ़ रही थी और मेरे दिल की धड़कने तेज हो चुकी थी। वो थोड़ी सी दूर पर आकर बैठी फिर मेरी तरफ देख कर मुस्करायी और कुछ कहा। पर ये क्या हो रहा है मुझे, मैं भाषा समझना और बोलना दोनों ही कैसे भूल गया ? उसने मेरी तरफ हाथ हिला कर फिर कुछ कहा तो मैं बस एक रोबोट की तरह अपना हाथ हिला पाया। शायद उसे लगा की मैं बोल नहीं सकता और उसने मेरे पास आकर इशारे में बात करने की कोशिश की। थोड़ी देर बाद जब मैंने अपने होश संभाले तब बात-चीत शुरू हुई।

अकेले बैठ कर क्या सोच रहे हो ?

दूर तक फैले इस सन्नाटे में दिल की धड़कनों को सुन रहा हूँ मैं 
बंद मुट्ठी से रेत फिसल रहा है फिर भी सुनहरे ख्वाबों को बन रहा हूँ मैं

"शायर हो क्या ?"
नहीं बस जो बातें जुबां से बयां नहीं कर पाता उन्हें अल्फ़ाज़ों में उतारने की कोशिश करता हूँ।

तुम क्या हो ?
"मैं तो एक तितली हूँ। आज यहां तो कल वहां, मेरी उड़ान को कोई बाँध नहीं सकता।"

यह बोलकर वो खिलखिलाने लगी और अपने बालों को एक झटके से पीछे किया। मेरे चेहरे पर उसके गेसुओं की बूँदे टकराईं और मेरा रोम-रोम रोमाँच से भर उठा।
उसने बड़ी शरारत से मुझे देखते हुए कहा "ऐसे क्या देख रह हो ?"

मैंने मुस्कुराते हुए कहा " कुछ नहीं "

" शायरी लिखते तो कुछ मेरे लिए सुनाओ "
कुछ बातों को लफ़्ज़ों के बजाये निग़ाहों से बयां करना ज्यादा अच्छा होता है। 

ये सुनकर वो शरमाई और कहा "तुम्हारी आँखें बहुत कुछ बोलती हैं।" 

फिर हमने इधर-उधर की काफ़ी बातें की और कुछ देर बाद उसने कहा कि कहीं और चलते हैं घूमने। कॉटेज के पीछे से मैंने अपनी एनफील्ड उठाई और जलपरी अपनी कॉटेज से कपड़े बदल कर आ गयी। उसके बाल अभी भी गीले और बिखरे हुए थे। उसकी ये सादगी उसे और भी खूबसूरत बना रही थी।

गोवा के उस छोटे से गाँव की वो सुनसान सड़कें, चांदनी रात, मैं, मेरी एनफील्ड और वो। 

रात की ख़ामोशी को तोड़ रही थी तो बस पत्तों की सरसराहट और एनफील्ड की धड़-धड़ करती आवाज़।  एनफील्ड की थरथराहट और मेरे दिल की धड़कने आज एक ही लय में चल रही थी। हवाओं से टकराकर उसकी ज़ुल्फ़ें बार-बार मेरे चेहरे को छू रही थी। उसके बदन की ख़ुशबू मानों ताज़े गुलाबों का कोई गुलदस्ता हो। उसने मुझे पीछे से पकड़ रखा है। सड़कें खाली हैं फिर भी रफ़्तार बढ़ाने का दिल नहीं कर रहा और मैं 40 की गति से चल रहा हूँ।

वो अपने हाथ फैलाकर हवाओं को छू रही है और उसकी वो दिलकश हसीं मेरे दिल को। आज बिना रफ़्तार के ही खून में एड्रेनलिन का प्रवाह बढ़ गया है। मैं बस इस समय इन लम्हों में गुम हूँ। चाहता हूँ की ये सफर बस चलता रहे।

फिर उसने मेरे कानों में कहा की आगे से एक मोड़ है वहाँ से एक और बीच है वहाँ चलते हैं। मैंने बाइक मोड़ ली और 10 मिनट में हम वहां पहुंच गए। उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा की चलो बीच पर चलते हुए बात करते हैं। बहुत देर तक काफी बातें की हमने और फिर हम लोग एक जगह बैठ गए।

मैं उसे देख रहा हूँ, वो मुझे और बीच में हैं हमारी ख़ामोशियाँ। चाँद की रौशनी पड़ रही है उसके चेहरे पर और हवाएं उसकी ज़ुल्फ़ों को बिखेर रही हैं और मैंने इससे ज्यादा ख़ूबसूरत नज़ारा कभी नहीं देखा था। हमारी नज़रें मिलीं और फ़िर होंठ और पूरे मैखाने में जो नशा न मिले वो नशा उसने मुझे दे दिया। हम दोनों चुपचाप हैं और कुछ बोलकर इस खूबसूरत पल को ख़राब नहीं करना चाहते।


फिर मैं रेत पर लेट गया और वो भी मेरे सीने पर सर रख कर लेट गयी। हम दोनों आसमान को देख रहे हैं और मैं सोच रहा हूँ मुझे आजतक इससे पहले रात की स्याही इतनी दिलक़श क्यों नहीं लगी ? अचानक जलपरी ने चुप्पी तोड़ी।

"तुम्हें अकेलापन बहुत पसंद है क्या ?"
पहले नहीं था पर अब उससे दोस्ती कर ली है तो आदत हो गयी है।

मैं नहीं चाहता की ये रात कभी ख़त्म हो।

"क्यों ?"
इससे ज्यादा खूबसूरत चीज़ कभी नहीं हुई मेरे साथ तो मैं चाहता हूँ की ये वक्त यहीं ठहर जाए।

वो मुस्कुराने लगी।

तुम ख़्वाब हो या हक़ीक़त ?
"हर सवाल के ज़वाब नहीं मिलते"

थोड़ी देर बाद जलपरी उठी और चल पड़ी। जाने से पहले एक बार मेरी तरफ मुस्कुराकर देखा और फिर स्याह अँधेरे में गायब हो गयी। मैं न कुछ कह पाया, न उसे रोक पाया और न उसका नाम तक पूछ पाया। मैं उसके जाने के बाद तक बहुत देर वहां तारों की छाँव में लेटा रहा। न आँखों में नींद थी और न मन में कोई हलचल। जैसे उफनते हुए दूध पर किसी ने पानी डाल कर उसे शांत कर दिया हो वही जादू जलपरी ने मुझे पर कर दिया था।

फिर मदहोशी का आलम जब टूटा तो मैं वापस अपने बाइक की तरफ चल पड़ा, मेरे दिमाग में आतिफ असलम की आवाज़ गूंजने लगी "मुझसे कहे इक जलपरी, डूब जाने दो जल में कहीं " और मेरे होठों पे एक मुस्कान खिल उठी।

अगले दिन मैंने हर जगह उसे बहुत ढूंढा पर वो नहीं मिली। वो कौन थी, कहाँ से आयी थी और कहाँ गयी ? वो मेरे दिमाग की एक कल्पना थी या एक सच्चाई, मुझे कुछ भी नहीं पता बस उसने एक ऐसी याद दे दी मुझे जो मैं कभी नहीं भूलूंगा। वो चेहरा और वो आवाज़ दोनों ही मेरे दिलो-दिमाग पर अपनी अमिट निशानी छोड़ चुके थे।

शायद वो कोई जलपरी ही थी !!

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