सिसकियाँ
" ऐसे उदास क्यों बैठे हो ? "
" कुछ नहीं बस आज तुम्हारी याद बहुत आ रही है "
"अच्छा तो आज से इसीलिए बात की जा रही है हमसे " - उसने हँसते हुए कहा
" ऐसा नहीं है, तुम अच्छे से जानती हो कि मैं तुमको बहुत मिस करता हूँ "
" हाँ बाबा जानती हूँ, बस तंग कर रही थी तुम्हें " - उसने चहकते हुए कहा
" अच्छा ये बताओ कि आज किस खुशी में पहाड़ों में अकेले घूम रहे हो ?"
" बहुत दिन से घुटन सी हो रही थी सो आज बाइक उठाई और ताजी हवा में सांस लेने को निकल आया "
" यार मन तो मेरा भी बहुत है बाइक ट्रिप करने का पर चाहकर भी नहीं आ सकती "
" जानता हूँ मैं "
" वैसे तुम्हें पता है जब बाइक चलाते वक्त हवा में उड़ती हुई तुम्हारी ज़ुल्फ़ें मेरे चेहरे से आकर टकराती थी तो बड़ा मजा आता था मुझे। हाँ कभी-कभी तुम्हारे बाल भी मुँह में चले जाते थे तो तेल और धूल-मिट्टी का स्वाद आ जाता था। काश तुम रोज नहाती तो बालों का टेस्ट भी उतना ही अच्छा होता जितनी अच्छी खुशबू उनमें से आती है।"
" छी !! कितने गंदे हो तुम ? मार खाओगे मुझसे "- उसने हँसते हुए कहा
" तुम जानती हो मैं जानबूझ कर स्पीड बढ़ा देता था ताकि तुम मुझे कस कर पकड़ लो "
" मैं कोई घबराती नहीं थी स्पीड से, मुझे भी तो तुम्हें अपनी बाँहों में जकड़ने का बहाना चाहिए होता था "
फिर कुछ देर के लिए एक ख़ामोशी छा गयी
" चुप क्यों हो गए ? "
" तुम्हें याद है आज कौन सा दिन है ?"
" हाँ, आज पूरे एक साल हो चुके हैं उस शाम को "
" क्या तुम अब भी मुझसे नाराज़ हो उस शाम के लिए ?"
" नहीं तो, तुम अब तक उस बात को लेकर बैठे हो। कितनी बार बोल चुकी हूँ कि तुम्हारी गलती नहीं थी उसमें अब अपने आप को कोसना बंद करो मुझे अच्छा नहीं लगता है तुम्हें ऐसे देख कर "
" तुम्हारे लिए कहना आसान है तुम तो आराम से बैठी हो वहाँ "
" मैं जानती हूँ तुम अभी तक खुद को जिम्मेवार मानते हो उसके लिए पर आखिर कब तक इस तरह गिल्ट में जी कर खुद को टार्चर करते रहोगे। एक बार देखो खुद को तुम, एक साल पहले कैसे थे और अब कैसे हो गए हो ? एक साल हो चुके हैं उस बात को अब मूव ऑन करो वहाँ से "
" तुम समझती क्यों नहीं की मैं खुद को माफ़ नहीं कर सकता उस दिन के लिए क्योंकि वो सब कुछ मेरी गलती के कारण हुआ था और इसलिए मैं डिज़र्व करता हूँ ये सब "
" अब मैं क्या बोलूँ तुम्हें "
" तुम्हें पता है, एक दिन ऐसा नहीं गुजरा है जब मैं उस शाम के बारे में नहीं सोचता। न चाहते हुए भी सब कुछ फ्रेम बाई फ्रेम याद है मुझे। काश मैंने उस दिन मोड़ पर स्पीड नहीं बढ़ाई होती, काश मैंने उस कार को ओवरटेक न किया होता, काश मैंने तुम्हें हेलमेट उतारने न दिया होता तो आज यहाँ अकेले बैठ कर तुम्हारी तस्वीर से बात नहीं कर रहा होता।
तुम बोलती हो कि भूल जाओ सब - पर कैसे भूलूँ मैं और क्या-क्या भूल जाऊँ मैं ? एक्सीडेंट से जस्ट पहले की वीडियो आज तक डिलीट नहीं कर पाया क्योंकि उसमें तुम्हारी आखिरी हँसी है और तुम्हारी आखिरी चीख़ भी जो आज भी मेरे कानों में गूँजती है। कैसे भूल जाऊँ तुम्हारा वो पीला दुप्पटा जो तुम्हारे खून से लाल में तब्दील हो चुका था ? कैसे भूल जाऊँ तुम्हारा वो ठंडा पड़ता जिस्म और बंद होती आँखें ? कैसे भूल जाऊँ कि आहिस्ता-आहिस्ता तुमने मेरी बाँहों में दम तोड़ा और मैं कुछ नहीं कर पाया था ? कैसे भूल जाऊँ कि उस दिन मैं ज़िंदा बच गया और तुम नहीं ?"
ढ़लते सूरज और घिरती शाम में आज एक बार फिर उसकी सिसकियाँ पहाड़ों में गूँजने लगीं।
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