छोटे शहर वाला इश्क़ #3

शहर में प्यार करने वालों को एकांत ढूँढना मुश्किल होता है, जहाँ पर घर और समाज की पहरेदारी से दूर आप सहज़ हो कर कुछ वक़्त बिता पाएं सुकून से। इसलिए अक्सर आपको प्रेमी जोड़े पार्कों या पुरानी स्मारकों, इमारतों या खण्डहरों के वीराने में दिख जाएंगे समाज कि शक्की और घूरती निग़ाहों से दूर।अज़ीब बात है न इस समाज कि छेड़खानी सरेआम होती है और प्यार करने वालों को गले लगने या चूमने के लिए भी जगह ढूंढनी पड़ती है क्योंकि इस समाज को खुलेआम छेड़खानी मंज़ूर है पर दो बालिग़ लोगों के बीच सहमति से हुआ क़िस नहीं। 

दिन के करीब 2 बज रहे होंगे। 

हम दोनों को मॉल्स में घूमना पसंद नहीं है मतलब शोरूम्स और फ़ूड प्लाज़ा कोई घूमने की जग़ह होती है भला, खैर सब की अपनी-अपनी पसंद होती है। इसलिए शहर के शोर-शराबे, भीड़-भाड़ और प्रदूषण से दूर हम एक बड़े पार्क में आ गए।  सर्दियों कि नरम-नरम धूप में सतरंगी फूलों की खुशबू के बीच, हरे मख़मली घास कि कालीन पर बैठने का मज़ा ही कुछ और है। 



मेरे दिन का सबसे ख़ूबसूरत हिस्सा अभी से शुरू होता है जब मैं उसकी गोद में अपना सर रख के लेट जाता हूँ और वो मेरे बालों में अपने हाथ फिराती है। सूरज कि किरणें मेरे चेहरे पर पड़ रही हैं सो उसने अपनी ज़ुल्फों की घटा से मेरे चेहरे पर छाँव कर दी। जब वो अपने धूप से गरम हुए मुलायम हाथों से मेरे माथे को सहलाती है तो ऐसा लगता है कि मेरी सारी परेशानियां, गुस्सा, बेचैनी गायब हो जाती हैं और मन एक झील की तरह शांत हो जाता है। हम दोनों कुछ बोल नहीं रहे हैं और बस चुपचाप एक दूसरे को देखे जा रहे हैं। उसके खूबसूरत चेहरे को कितना भी निहार लूँ मेरा मन ही नहीं भरता है और देखते-देखते मैं उसकी उन बड़ी आँखों की गहराईयों में डूब सा गया हूँ। 

" एक बात बताओ, तुम्हारे जैसी लड़की मुझे क्यों पसंद करती है ? "
" ये सवाल कहाँ से आ गया अचानक से "- उसने हँसते हुए कहा 
" बताओ न !!"
" अच्छा, आज अपनी तारीफ सुनने का मन है तुम्हें "
" ऐसा नहीं है पर मैं अक्सर सोचता हूँ कि तुम काफ़ी एक्सप्रेसिव हो पर मैं खुल के कभी अपना प्यार दिखा नहीं पाता मेरा मतलब है कि अंदर इतना कुछ भरा है तुम्हारे लिए पर पता नहीं क्यों उन इमोशंस को शब्दों में पिरोना नहीं आता मुझे और वो गले तक आकर अपना दम तोड़ देते हैं। कभी तो तुम्हें बुरा लगता होगा कि बाकी लड़कों कि तरह मैं न तो तुम्हारे लिए कुछ लिख पाता हूँ, न महँगे तोहफ़े दे पाता हूँ, न फैंसी डिनर करा पाता हूँ, न रोमांटिक लाइन्स बोल पाता हूँ। क्या तुम्हें कभी ये ख्याल नहीं आता कि मेरे बजाये किसी ऐसे लड़के के साथ होती तो ज़्यादा खुश रहती तुम ?"

उसका चेहरा गंभीर हो गया और थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद उसने कहा -

" तुम्हें पता है मेरे मम्मी-पापा दोनों कॉर्पोरेट जॉब्स में हैं। बचपन से जो चीज़ चाही वो माँगने से पहले मिल जाती थी चाहे वो महँगे से महँगे खिलौने हों या कोई फैंसी ड्रेस। मेरे घरवालों ने मुझे हर तरह कि सहूलियत और आराम दिया सिवाए अपने वक़्त के। वो ये नहीं समझ पाए कि इतना सारा पैसा सिर्फ सहूलियत और आराम ख़रीद सकता है पर प्यार कि कमी को पूरा नहीं कर सकता। उनके लिए अपना करियर ज़्यादा जरुरी तब भी था और आज भी है। 

अपने घर में मैं ऐशो-आराम से भरे एक पिंजड़े में बंद सी महसूस करती थी क्योंकि पिंजड़ा भले सोने का ही क्यों न बना हो होता तो वो पिंजड़ा ही है। तुमसे मिलने के बाद मेरी बेरंग सी जिंदगी में रंगत आ गयी। मेरे बिना मांगे भी जो प्यार तुम बरसाते हो मुझ पर, वो बचपन से बंजर पड़े मेरे मन की मिट्टी तुरंत सोख लेती है पर फिर भी उसकी प्यास नहीं बुझती है। मैं इसी फ़िक्र और प्यार के लिए तो तरसती थी और दुनिया के ऐशो-आराम और महँगे तोहफे इस कमी को कभी पूरा नहीं कर सकते।

अब रही बात प्यार जताने कि तो मुझे पता है की तुम चाह कर भी बोल नहीं पाते हो क्यूंकि तुम एक शांत ज्वालामुखी की तरह हो जिसके अंदर जज़्बातों का लावा ऊपर तक भरा हुआ है बस उसे निकलने का रास्ता नहीं मालूम है। और तुम्हें क्या लगता है, मैं ध्यान नहीं देती कि तुम क्या करते हो मेरे लिए। 

सड़क पार करने से पहले मेरा हाथ पकड़ कर बच्चे कि तरह पार करवाना। सड़क पे चलते हुए तुम हमेशा खुद को गाड़ियों वाली साइड रखते हो और मुझे किनारे। हम कहीं जाते हैं और अगर लड़के मुझे घूर रहे होते हैं तो तुम्हारे हाथ मेरा हाथ कसकर थाम लेते हैं, तुम्हारे जबड़े गुस्से में खिंच जाते हैं और तुम बस जल्दी से मुझे वहाँ से लेकर जाना चाहते हो। तुम्हें सर्दी-ज़ुकाम बहुत जल्दी होता है मगर फिर भी बारिश में छाते के नीचे मुझे रखते हो और खुद भीगते रहते हो और बहाना करते हो की तुम्हे बरसात में भीगना पसंद है। मुझे घर छोड़ने के बाद तुम तब तक खड़े रहते हो मेरी बिल्डिंग के नीचे जब तक मेरे कमरे की बत्ती नहीं जल जाती है और मैं तुम्हें खिड़की से लौटते हुए देखती हूँ।"

" मैंने सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि मासूमियत और नादानियों के नकाब के पीछे तुमने अपने दिल में इतना कुछ दबा रखा होगा और मेरी इतनी छोटी बातों पर ध्यान देती होगी "- मेरा गला भर रहा था पर मैंने खुद की आवाज़ को सँभालते हुए कहा 
" हाँ क्योंकि फिलॉस्फर तो बस तुम ही हो ना "
" मेरा ये मतलब नहीं था "
" और हाँ तुमको झूठ बोलना भी ठीक से नहीं आता है। तुम्हारी डायरी ने तुम्हारे सब राज़ खोल दिए मेरे सामने। मुझसे बोलते हो की लिखना नहीं आता है और अपनी हर कविता और शायरी मेरे नाम से शुरू करते हो और आज तक मुझे कुछ सुनाया भी नहीं। मुझसे ज़्यादा तो तुम्हें अपनी डायरी से प्यार है। 

रंग उसके बारिश में धुल के हैं खिलते और निखरते
रूप उसकी ज़मीनों के चेहरों से मिलते और दमकते 
उसके अंदाज़ जैसे हैं मौसम आते-जाते 
उसके सब रंग हँसते-हँसते जगमगाते 

" और ये किसके लिए लिखा है आपने ज़नाब ?"
" अनवर मक़सूद साहब का लिखा हुआ है ये क्योंकि इन खूबसूरत अल्फ़ाज़ों से बेहतर मैं तुम्हें बयां नहीं कर पाता " 

ये सुन कर उसके गोरे गाल शर्म से लाल हो गए। 

" वैसे तुमने मेरी डायरी कब पढ़ी ? "
" पिछली बार जब हम पार्क में आये थे तो तुम मेरी गोद में सो गए थे और तुम्हारी जैकेट से डायरी गिर गयी थी और पर्दा उठ गया।" - उसने चहकते हुए कहा 
मेरे चेहरे पे मुस्कान आ गयी। फिर वो झुकी और हौले से मेरे माथे पर अपने सुर्ख होठों की नमी छोड़ दी। 
" पता है अभी मुझे तुमसे तीसरी बार प्यार हो रहा है "
" अच्छा जी !! पागल हो तुम "- ये कहते हुए उसकी रेशमी ज़ुल्फ़ों की चादर ने मेरे चेहरे को ढँक लिया। 

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